एक दिन थॉमस अल्वा एडिसन जो कि प्रायमरी स्कूल का विद्यार्थी था, अपने घर आया और एक कागज अपनी माताजी को दिया और बताया- ‘‘मेरे शिक्षक ने इसे दिया है और कहा है कि इसे अपनी माताजी को ही देना..!’’ उक्त कागज को देखकर माँ की आँखों में आँसू आ गये और
यह प्रकट सत्य है कि मरने वाले के साथ कोई नहीं मरता और व्यक्ति को अकेले ही यह यात्रा करनी होती है। परिवार के सभी सदस्य रोते कलपते रह जाते हैं, और कोई कितना ही आत्मीय हो, वह मरने वाले के साथ नहीं जाता। मनुष्य मरते समय परिवार की ही क्या, संसार के सभी पदार्थ यहाँ तक कि खुद
नब्बे वर्ष के एक व्द्ध से किसी जिज्ञासु ने पूछा-आपका शरीर पूर्ण स्वस्थ है। आपके शरीर में अपार स्फूर्ति है। आपके भव्य और दिव्य चेहरे को देखकर ऐसा लगता है कि आप पूर्ण रूप से सुखी हैं। वृद्ध ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया और कहा -मैं सुखी हूँ, स्वस्थ हूँ। जिज्ञासु ने
अम्मा हुईं आज बीमार, लगा आफतों का अंबार। सबको चाय पिलाए कौन, रोटी आज बनाए कौन। पापा को आॅफिस जाना, लंच पैक भी ले जाना। बैठे सर पर हाथ धरे, सबके मुंह उतरे-उतरे। ब्रेक फास्ट ना बन पाया, मैं शाला ना जा पाया। गुड़िया की है लाचारी, कौन कराए तैयारी। पर उसने हिम्मत बांधी, उठी च
कहा जाता है कि आदमी को खुश करने का रास्ता उसके पेट में से जाता है। अतः हर गृहणी को ‘भोजन की थाली कैसे पेश की जाए’ इस बात का समुचित ज्ञान होना जरूरी है। आइए देखते है कि भोजन की थाली कैसे पेश की जानी चाहिए। यह बात कदापि जरूरी नहीं है कि जब तक भोजन की थाली में
हर व्यक्ति को मानवमात्र की भलाई के लिए सेवारत होना चाहिए। लेकिन प्रश्न उठता है कि सेवा किसकी? ये प्रश्न जितना सरल लग रहा है उतना ही जटिल है। लौकिक दृष्टि से हम दूसरों की सेवा भले कर लें, किंतु पारमार्थिक क्षेत्र में? सबसे बड़ी सेवा अपनी ही हो सकती है। आध्यात्मिक दृष्टि से किसी अन्य की सेवा नही, अप
सम्यक् दृष्टि - सम्यक् दृष्टि का अर्थ है कि जीवन में हमेशा सुख-दुःख आता रहता है हमें अपने नजरिये को सही रखना चाहिए, अगर दुःख है तो उसे दूर भी किया जा सकता है। सम्यक् संकल्प - इसका अर्थ है कि जीवन में जो काम करने योग्य ह
भोजन न सिर्फ हमारी भूख मिटाता है, बल्कि यह हमारे मन, शरीर एवं आत्मा का भी पोषण करता है, एवं सिर्फ जीवित रहने के लिये भोजन करना पर्याप्त नहीं है हम अपने जीवन में संतुलन, खुशी एवं परमानंद की प्राप्ति के लिये प्रयास करते हैं एवं भोजन चेतना की इस अवस्था को प्राप्त करने में एक प्रमुख कारक है इसलिये यह
आओ आज हम सेवा के माध्यम से ज्ञान को हासिल करें। जिसके प्राप्त हो जाने पर, इस धरती पर सत्कार्यों के माध्यम से स्वर्गिक सुख की प्राप्ति होती है। राम हमारे हृदय में, मर्यादा आचरण में, हमारा देह ही देवालय हो। अपने पुरुषार्थ से ही हम पुरुषोत्तम होने का प्रयास करें तो हमें पता चलेगा कि अयोध्या हमारी है
एक बार कुछ वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही रोचक प्रयोग किया। उन्होंने 5 बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में बंद कर दिया और बीचों-बीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे। जैसी कि उम्मीद थी, जैसे ही एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी वो उन्हें खाने के लिए दौड़ पड़ा। पर जैसे ही उसने कुछ सीढ़ियां चढ़ीं, उस पर ठण्डे प